श्रम विधियों का इतिहास


श्रम विधियों का इतिहास

कुछ प्रमुख और महत्वपूर्ण जानकारियां



-- अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस की शुरुआत - मई दिवस (1 मई 1891 से)


-- भारत में श्रम आंदोलन का प्रारंभ श्री नारायण एम. लोखंडे ने 1884 में कर दिया था।


-- श्री लोखंडे ने "मिल हैंड्स एसोसिएशन" की स्थापना की।


-- श्री नारायण एम. लोखंडे भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के पिता के रूप में सम्मानित हैं।


-- लोखंडे ने श्रमिकों की दुर्दशा से विचलित होकर मिल मालिकों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था और उन पर श्रमिकों को उचित व सही समय पर मजदूरी देने, कामकाज का स्वस्थ वातावरण बनाने और श्रमिकों की जायज मांगों को मानने के लिए दबाव बनाया था।


-- आंदोलन का परिणाम ---

- कारखाना मजदूर आयोग की स्थापना की गई और श्री लोखंडे को आयोग का सदस्य बनाया गया।

- आयोग के सक्रिय होने के कारण 1891 में कारखाना अधिनियम लागू किया गया।


-- 1931 में महात्मा गांधी द्वारा मूल अधिकारों पर तैयार किए गए प्रस्ताव में निम्नलिखित प्रावधान थे -

(1) उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों के लिए एक जीवित मजदूरी, श्रम के सीमित घंटे, काम की बेहतर परिस्थिति तथा वृद्धावस्था, बीमारी और बेरोजगारी के आर्थिक परिणामों के विरुद्ध संरक्षण दिया जाए।

(2) श्रम को दासता या भूदासता की सीमा से लगी स्थितियों से मुक्त किया जाए।

(3) महिला श्रमिकों को संरक्षण और मातृत्व अवकाश के पर्याप्त प्रावधान किए जाएं।

(4) बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाया जाए।

(5) मजदूरों को अपने हितों की रक्षा हेतू यूनियन बनाने का अधिकार होना चाहिए।



-- अनुच्छेद 43 - श्रमिकों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि।

राज्य उपयुक्त कानून या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य तरीके से सभी श्रमिकों, कृषि, औद्योगिक या अन्यथा काम, एक जीवित मजदूरी, काम की स्थिति सुनिश्चित करने के लिए एक सभ्य जीवन स्तर और अवकाश का पूरा आनंद सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा और सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर और विशेष रूप से राज्य ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत या सहकारी आधार पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा।




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